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खिलाफत आंदोलन

March 4, 2024

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Credits: eSamskriti

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य आंदोलन में से एक है खिलाफत आंदोलन। इसकी शुरुआत 1919 में हुई और समापन 1924 में हुआ। इस आंदोलन को मुस्लिम समुदाय के द्वारा शुरू किया गया था, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ था। बता दें, खिलाफत आंदोलन की शुरुआत मोहम्मद अली जौहर, अब्दुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खान और हसरत मोहानी जैसे बड़े नेताओं के द्वारा हुई थी। इसका मकसद था खिलाफत सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाना और ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ कार्य करना।

ब्रिटिश सरकार के द्वारा 1919 में तुर्की के सुलतान और खलीफा को पद से हटा दिया गया। इसके पीछे का कारण प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश शासकों का व्यवहार तुर्की के प्रति देखकर सभी मुसलमानों को काफी झटका लगा। वहीं उन सभी ने ठान लिया कि इसके खिलाफ निश्चित आवाज उठाना है। इसमें तुर्की के साथ "सेवर्स की संधि" की गई। इसके बाद तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य को अलग कर दिया गया और खिलाफा को उसके पद से निष्कासित कर दिया वाया। 

इस पर पूरे विश्व के मुस्लिमों ने अपना आक्रोश दिखाया और 1919 में खिलाफत कमेटी को गठन किया गया। इसके बाद 1919 में अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन दिल्ली में हुआ। इसमें सभी अंग्रेजी चीजों के बहिष्कार की मांग को रखा गया। इसके बाद देश की आजादी के लिए इस आंदोलन में हिंदू एवं मुसलमान दोनों आगे आए। वहीं 1920 में महात्मा गांधी के द्वारा चलाई जा रही असहयोग आंदोलन से खिलाफत आंदोलन को विलय किया गया।

खिलाफत आंदोलन के परिणाम

स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में आया बदलाव

खिलाफत आंदोलन के साथ ही ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आम लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। सभी लोग ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विरोध कर रहे थे। इस आंदोलन को और भी महत्वपूर्ण बनाने के लिए गांधी जी ने भी इसका सहयोग किया। इसके बाद खिलाफत आंदोलन और गांधीजी का असहयोग आंदोलन एक साथ सामने आया, जो स्वतंत्रता संग्राम को काफी तेजी से बढ़ावा दिया। 

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एकता का हुआ उत्थान

खिलाफत आंदोलन के कारण मुस्लिमों में एकता की भावना जागी। इस आंदोलन में अलग-अलग मुस्लिम संगठन एक साथ सामने आए। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण भूमिका बनी। 

ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आम जनता ने किया समर्थन

खिलाफत आंदोलन शुरू होने के बाद आम जानताओं ने ब्रिटिश शासकों के खिलाफ आंदोलन पर उतरा। इस आंदोलन के तहत कई सारे प्रदर्शन किए गए, वहीं सत्याग्राम और विरोधी धर्मनिरपेक्ष आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आंदोलन को जन्म दिया। 

तुर्की के खिलाफा पद का समर्थन

खिलाफत आंदोलन के द्वारा ही खिलाफा पद के समर्थन में प्रदर्शन किया गया। इससे सभी मुस्लिम साथियों ने जो तुर्की से ताल्लुक रखते थे, उन सभी ने खिलाफा पद की रक्षा की। इसके अलावा इस पद को अपने धार्मिक और सामाजिक प्रतीक में मानते रहे। 

खिलाफत आंदोलन का हुआ अंत

खिलाफत आंदोलन के बीच में चौड़ी चार्टर्ड नहर कांड की शुरुआत हो गई। इससे खिलाफत आंदोलन की गति काफी धीमी हो गई। इसके कारण 1924 में खिलाफत आंदोलन को खत्म कर दिया गया। लेकिन यह पूर्ण रूप से बंद नहीं हुई, खिलाफत आंदोलन के सदस्यों के द्वारा आंदोलनबाजी और समर्थन को जारी रखा गया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य भूमिका है।

खिलाफत आंदोलन के दौरान हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं

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खिलाफत कमेटी की हुई स्थापना

खिलाफत आंदोलन शुरू होने के बाद खिलाफत कमेटी की भी स्थापना 1919 के दौरान बॉम्बे में की गई। इस स्थापना के समय पर मोहम्मद अली, मौलाना आजाद अली जौहर, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आदि मौजूद थे। 

असहयोग आंदोलन

खिलाफत आंदोलन ने असहयोग आंदोलन के जरिए विकसित होकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें सभी मुसलमानों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ एक साथ सामने आए। इससे अंग्रेजों के खिलाफ एक यूनाइटेड फ्रंट का निर्माण किया गया। 

चौरी चौरा हत्याकांड

1922 में एक घटना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास हुई। इस घटना में किसानों ने पुलिस चौकी में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिसकर्मियों को अपनी जान गवानी पड़ी। इसके बाद गांधी जी को असहयोग आंदोलन खत्म करना पड़ा।

कांग्रेस कार्य समिति का गठन

कांग्रेस के सभी कार्यों को बेहतर ढंग से करने के लिए एवं कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व के लिए 15 सदस्यों के साथ एक कांग्रेस कार्य समिति का गठन किया गया।

खिलाफत आंदोलन का महत्व

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बेहद महत्वपूर्ण अध्याय है खिलाफत आंदोलन। इसका प्रभाव भारतीय इतिहास पर बहुत गहरा पड़ा है। इस आंदोलन का हिस्सा असहयोग आंदोलन भी था। इन दोनों आंदोलन ने मिलकर एक महत्वपूर्ण यूनिट को जन्म दिया। इसमें कुछ महत्वपूर्ण  चीजें भी हैं जो आंदोलन के समय सामने आया। 

•हिंदू मुसलमान के बीच एकता 

•असहयोग आंदोलन की शुरुआत 

•अंग्रेजों के द्वारा लाई गई वस्तुओं का बहिष्कार 

•अंग्रेजों के खिलाफ हुआ प्रतिष्ठा संघर्ष 

•देश को अंग्रेजों से मुक्त होने की उम्मीद

खिलाफत आंदोलन का निष्कर्ष

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आयाम देने वाला खिलाफत आंदोलन सबसे अहम था। इस आंदोलन के दौरान हिंदू मुस्लिम में एकता देखने को मिली। इसके अलावा असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई। इतना ही नहीं, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने की संकल्प मजबूत हुई। इसके कारण हम कह सकते हैं कि खिलाफत आंदोलन सभी राष्ट्रीय आंदोलन का बेहद महत्वपूर्ण अंग है। इसमें भारतीय समाज में एकता की भावना उत्पन्न हुई।

जरूर पढ़ें: सविनय अवज्ञा आंदोलन: एक विष्लेषण

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खिलाफत आंदोलन के परिणाम

खिलाफत आंदोलन के दौरान हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं

खिलाफत आंदोलन का निष्कर्ष

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