प्रथम विश्व युद्ध
March 24, 2024

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परिचय
प्रथम विश्व युद्ध (World War I) एक ऐसी घटना थी जिसने पुरे विश्व के इतिहास को परिवर्तित कर दिया। प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत 28 जुलाई 1914 को हुई थी और इसका समापन 11 नवंबर 1918 को हुआ था। इस युद्ध में कई सारे देश शामिल थे। इस भीषण युद्ध में 20 मिलियन से भी अधिक सेना मारे गए, वहीं 22 मिलियन से भी अधिक सेना घायल हो गए।
प्रथम विश्व युद्ध में कई सारे देशों ने भाग लिया था
कुछ मुख्य देशों में फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, इटली, सर्बिया, बेल्जियम, जापान और अमेरिका (1917 में युद्ध में शामिल हुआ) शामिल है।
सेंटर्स पावर की बात करें तो उसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, तुर्की, बुल्गारिया शामिल है।
इन सभी देशों के बाद कई सारे छोटे देश ऐसे भी थे जिन्होनें इस युद्ध में समर्थन और संघर्ष के मुख्य भूमिका निभाया इसमें चीन, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ग्रीस, रोमानिया, अफ्रीका, लेबनान, एशिया आदि शामिल हैं।
प्रथम विश्व युद्ध के कारण
- तात्कालिक कारण: सर्बियाई राष्ट्रवादियों द्वारा आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या
प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने के तात्कालिक कारण: ऑस्ट्रिया-हंगरी के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड बोस्निया अपनी पत्नी के साथ साराजेवो का दौरा कर रहे थे। इस दौरान उनपर दो बार हमला किया गया और उनकी हत्या कर दी गयी। इसके पीछे बोस्नियाई सर्ब छात्र गैवरिलो प्रिंसिप का हाथ था। इस हमले के बाद ऑस्ट्रिया-हंगरी सरकार बेहद गुस्से में आ गयी।
एक समय पर बोस्निया-हर्जेगोविना की प्रांतीय राजधानी साराजेवो था। इसपर 1908 में ऑस्ट्रिया-हंगरी ने कब्ज़ा कर लिया था, जिसके कारण आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड बोस्निया और उनकी पत्नी सोफी, डचेस ऑफ होहेनबर्ग की 28 जून 1914 को हत्या कर दी गयी। इस घटना के बाद जुलाई संकट की शुरुआत हुई। इसके बाद ऑस्ट्रिया-हंगरी ने सर्बिया पर प्रथम विश्व युद्ध की घोषणा कर दी।
प्रथम विश्व युद्ध में रूस की संधि सर्बिया के साथ हुई थी। इसलिए रूस भी प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हो गया।
इतना ही नहीं अब युद्ध बढ़ता गया और ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा कि क्यूंकि एक समय था जब जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण किया था। यह बात अनुचित थी क्यूंकि उस समय पर ब्रिटेन ने फ्राँस और बेल्जियम ने इन दोनों देशों की देखभाल के लिए समझौता किया था।
इतना ही नहीं अब युद्ध बढ़ता गया और ब्रिटेन ने जर्मनी के साथ युद्ध की घोषणा कि क्यूंकि एक समय था जब जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण किया था। यह बात अनुचित थी क्यूंकि उस समय पर ब्रिटेन ने फ्राँस और बेल्जियम ने इन दोनों देशों की देखभाल के लिए समझौता किया था।
साम्राज्यवाद (Imperialism)
प्रथम विश्व युद्ध (World War I) का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद भी है। यह एक ऐसा संगठित, स्थायी, और व्यापक साम्राज्यवाद बना जिसने विश्व के अन्य हिस्सों को प्रभावित किया। जिसमें राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक स्थितियां शामिल है। इसके अलावा साम्राज्यवाद के कुछ मुख्य तत्व भी हैं जिसमें सामरिक और आर्थिक उपलब्धियां, नेतृत्व और शक्ति की भूख, जल, स्थल और वायुसेना की प्रतिष्ठा, जनसंख्या और संसाधनों का दबाव आदि शामिल हैं। इन सभी के कारण प्रथम विश्व युद्ध के आगमन का साम्राज्यवाद और आक्रमणवाद एक महत्वपूर्ण कारण बना। इससे यूरोप के रक्षा संबंधों की विदेश नीतियों की चर्चा वाद विवाद का विस्तार होने लगा। वहीं यह युद्ध जो 1914 में शुरू हुआ था वह 1918 में जाकर खत्म हुआ।
इतना ही नहीं, इसके बाद मोरक्को तथा बोस्निया संकट के कारण इंग्लैंड और जर्मनी के बीच भेदभाव और प्रतिस्पर्धा की भावना फैलने लग गयी। प्रथम विश्व युद्ध में विश्वभर के अन्य देशों को घसीटा गया। इसका कारण बढ़ रहा प्रतिस्पर्द्धा और यूरोपीय देशों के बीच बढ़ रहा टकराव था।
सैन्यवाद (Militarism)
सैन्यवाद प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में विश्व को नाशक संघर्ष के दिशा में ले गया। सैन्यवाद के कारण राष्ट्रों के बीच विस्तारवादी और प्रतिस्पर्धात्मक सामरिक दबाव बढ़ता चला गया। इतना ही नहीं, सैन्यवाद सामरिक संसाधनों के उत्पादन, शक्ति के प्रदर्शन, सैन्य विस्तार की भूमिका को बढ़ावा देता है।
सैन्यवाद के कुछ मुख्य कारण भी थे: 1914 तक सैन्य निर्माण की सबसे अधिक वृद्धि हुई। वहीं इसका सबसे अधिक विस्तार जर्मनी में हुआ। इसके अलावा सबसे बड़े जहाज का भी निर्माण 1912 में जर्मनी में हुआ। इससे युद्ध में जितने भी देश शामिल थे उन सभी को बढ़ावा मिलने लगा। वहीं उद्योगीकरण ने सामरिक उत्पादन को बढ़ावा दिया और सेनाओं के लिए नए और शक्तिशाली हथियारों की आपूर्ति की संभावना को उत्पन्न किया। इतना ही नहीं, सामरिक संघर्ष के कारण युद्ध के तत्वों का विस्तार होने लगा जिससे संघर्ष विनाशकारी युद्ध में तब्दील हो गया।
परस्पर रक्षा सहयोग (Entangling Alliances)
परस्पर रक्षा सहयोग प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य कारण था। इसका उद्देश्य दो देशों के बीच सहायता और समर्थन प्रदान करना था। मगर युद्ध के पहले कई देशों ने एक दूसरे के साथ मित्रता समझौते किया था। इसमें यह तय हुआ था कि अगर किसी एक देश पर हमला होता तो उसे दूसरे देश की सहायता का अधिकार होगा। वहीं ये युद्ध के समय ये संधियाँ एक दूसरे को साथ आने लगी, जिससे एक छोटे युद्ध को एक बड़े और अधिक उत्तेजक युद्ध में बदल दिया गया।
जर्मनी की नई अंतर्राष्ट्रीय विस्तारवादी नीति
प्रथम विश्व युद्ध का सबसे बड़ा कारण था जर्मनी की नई अंतर्राष्ट्रीय विस्तारवादी नीति। क्यूंकि जर्मनी के नैशनलिज्म का उदय 19वीं सदी में हुआ था। यह जर्मनी का राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवाद को लेकर संघर्ष था। वहीं जर्मनी की नई अंतर्राष्ट्रीय विस्तारवादी नीति प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य कारण इसलिए भी बनी। क्यूंकि यह नीति उन्नति की इच्छा, राष्ट्रीय स्वाभिमान और राजनीतिक उद्देश्यों का परिणाम थी। यह जब अन्य देश के लोगों ने देखा तो युद्ध में अस्थिरता उत्पन्न हो गयी। जिससे विश्व के इतिहास में एक अद्वितीय और प्रभावशाली युद्ध की शुरुआत की।
अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशाली संस्था का अभाव बना कारण
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोई भी ऐसा अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशाली संस्था नहीं था, जो अलग अलग में फ़ैल रहे स्पर्धा को कम कर सके और युद्ध को रोक सके। इससे सभी देश मनमानी कर रहे थे। इससे युद्ध बढ़ता ही चला गया।
प्रथम विश्व युद्ध के चरण
युद्ध के शुरुआती चरण (1914-1915): प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत 28 जून 1914 को सर्बिया के राजकुमार फ्रांज फर्डिनेंड और उसकी पत्नी की हत्या से हुई थी। इसे"आक्रमणवादी चरण" के नाम से भी जाना जाता है। अब जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, और इटली जैसे साम्राज्यवादी देशों ने संघर्ष की शुरुआत की। इसके बाद बार्शा युद्ध (Trench Warfare) की शुरुआत हुई। इसके शुरूआती दिनों में सभी सैनिक खुद को एक निर्मित गड्ढे में छिपा लेते थे।
युद्ध का मध्य चरण (1916-1917): इस चरण के शुरुआत में सोम निरसन की घटना घटी। इसमें लाखों की संख्या में सैनिकों ने अपनी जान गबा दी। इसके बाद 1917 में रूसी क्रांति के कारण रूस का युद्ध खत्म हो गया। यह जर्मनी पर सामरिक क्रांति का कारण बन गया।
युद्ध का अंतिम चरण (1918): प्रथम विश्व युद्ध का अंतिम आक्रमण जर्मन सेना ने वेस्टर्न फ्रंट पर किया। इसे "स्प्रिंग ऑफेंसिव" भी कहा गया है। मगर इस आक्रमण के बाद जर्मन सेना को हार का सामना करना पड़ा। इससे उन्होंने फ्रेंच और अमेरिकी सेनाओं के आगे घुटने टेक दिया। अब जर्मनी को आर्थिक संकट जैसी स्थिति झेलनी पड़ी। इसके कारण जर्मन सम्राट कैज़र विलियम द्वितीय ने अपनी गद्दी छोड़ दी। इसके बाद 11 नवंबर 1918 को, जर्मनी और उसके संघर्षात्मक साथी देशों ने युद्ध खत्म करने को लेकर आपसी संधि किया। वहीं जर्मनी में वेमर गणतंत्र की स्थापना की गयी। इसके बाद जर्मन की नई सरकार ने युद्धविराम के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया और युद्ध को समाप्त किया।
प्रथम विश्व युद्ध का आर्थिक परिणाम
प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम बेहद दुर्भाग्यपूर्ण रहा। इस युद्ध के कारण दुनियाभर को भारी नुक्सान का सामना करना पड़ा। इसके अलावा अर्थव्यवस्था पर इसका काफी प्रभाव पड़ा जिससे कई सारी समस्या उत्पन्न हो गयी।
अर्थव्यवस्थाओं का उदारीकरण
युद्ध के कारण दुनियाभर का अर्थव्यवस्था डगमगा गया। इससे कई देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिली। इसके आलावा जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन के धन का 60% हिस्सा युद्ध में खर्च हो गया। इसके बाद जर्मनी के विकास के लिए वहां के लोगों से उधार मांगने की नौबत आ गयी। इसके अलावा युरोपीय देशों की आर्थिक गिरावट से वहां की अर्थव्यवस्था ने विकराल रूप धारण कर लिया। इससे लोगों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
उत्पादन और उद्योगों का नुकसान
युद्ध के कारण उत्पादन और उद्योगों का काफी नुक्सान हुआ। यूरोप के कई सारे देशों में उत्पादन की व्यापक कमी देखी गयी। इसके अलावा कई सारे उद्योगों को बंद कर दिया गया। युद्ध के परिणामस्वरूप, दुनिया में आर्थिक असंतुलन बढ़ने लग गया। कई सारे विकसित देशों के अर्थव्यवस्था में भी गिरावट देखने को मिली। इसके अलावा प्रथम विश्व युद्ध के बाद, अर्थव्यवस्थाओं की नई व्यवस्थाओं को शुरू करने की कोशिश की गई। इसमें लीग ऑफ नेशंस और वर्साय संधि की स्थापना शामिल है।
प्रथम विश्व युद्ध के राजनीतिक परिणाम
विश्व के इतिहाद में प्रथम विश्व युद्ध का राजनितिक परिणाम बेहद महत्वपूर्ण है। इस युद्ध के बाद राजनीति में कई सारे परिवर्तन स्थायी रूप से किये गए। वहीं युद्ध के बाद साम्राज्यों का अंत हुआ था। इसमें मुख्य रूप से ऑस्ट्रो-हंगेरी और ओटोमन साम्राज्य शामिल है। इसके अलावा युद्ध ने मुख्य रूप से यूरोपीय समाज को बदल दिया, इसमें समाजवादी और कम्युनिस्ट विचारधाराओं को खूब बढ़ावा मिला।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात कई राष्ट्रीय सीमाएं में बदलाव की गयी और नए देश उत्पन्न हुए। इसमें चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया, पोलैंड, और हंगरी शामिल है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय संगठन लीग ऑफ नेशंस (अब संयुक्त राष्ट्र) की स्थापना हुई। इसका मुख्य उद्देश्य देशों के बीच हो रहे आपसी मतभेद को शांतिपूर्वक सुलझाना है।
प्रथम विश्व युद्ध के सामाजिक परिणाम
प्रथम विश्व युद्ध के बाद समाज पर बहुत गहरा असर पड़ा। इसमें कई सारे युवाओं की की मौत हो गयी। इसके अलावा कई सारे युवा विकलांग हो गए। युद्ध के बाद माना जाता है कि करीब एक पीढ़ी लोगों का मुख्य रूप से नुक्सान हुआ है।
समाज में परिवारिक संरचना का बदलाव देखा गया। सभी लोगों में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो गयी। क्यूंकि युद्ध के दौरान बहुत से लोगों ने अपने परिवार के सदस्य को खो दिया। इसका बेहद गहरा असर लोगों पर देखने को मिला। इतना ही नहीं, महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन देखने को मिला। युद्ध के दौरान उन्हें उन सभी कामों को करना पड़ा जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। युद्ध के बाद बहुत सारे लोगों को गरीबी और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। वहीं कई सारे लोगों ने अपनी नौकरी खो दी। इससे आर्थिक स्थिति उत्पन्न होने लग गयी।
भारत पर प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
प्रथम विश्व युद्ध में भारत के सेनाओं को शामिल होना पड़ा। इसका कारण यह था कि विश्व युद्ध में ब्रिटेन भी शामिल था। उस समय पर भारत का शासक ब्रिटेन था। इसके कारण भारतीय सेनाओं को भी विश्व युद्ध में भाग लेना पड़ा। इतना ही नहीं, इस युद्ध में शामिल होने वाले सभी भारतीय सैनिकों की प्रशंसा पुरे विश्व भर में की गयी। सभी विदेशियों ने उनकी बहादुरी की सराहना की।
प्रथम विश्व युद्ध से मिली स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा
ब्रिटेन के कारण प्रथम विश्व युद्ध में सभी भारतीय सेनाओं को भाग लेना पड़ा। इससे भारतीय सेनाओं के मन में आंदोलन की भावना जागने लगी। इसके कारण यह युद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा स्थल भी बना। इसके बाद भारत के बड़े नेताओं ने स्वतंत्रता की लड़ाई में प्रथम विश्व युद्ध को बड़ा उदहारण बनाया। इससे सभी सैनिकों ने डटकर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।
प्रथम विश्व युद्ध के कारण भारत पर आर्थिक प्रभाव
थम विश्व युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से असर डाला और इसने भारतीय समाज और राजनीति को बदल दिया। युद्ध के बाद भारत की आर्थिक दुर्बलता बढ़ने लग गयी। इस युद्ध के कारण भारत के अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ सकता था। मगर ब्रिटिश सरकार ने युद्ध के लिए सामग्री और सेनाओं को भारत से बढ़ा दिया, इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ने लगा।
भारतीय समाज में आया बदलाव
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में राजनितिक और सामाजिक बदलाव भी देखने को मिले। इसके अलावा भारतीय समाज में आर्थिक बदलाव भी आया। युद्ध के दौरान भारत के एक पीढ़ी लोगों की मौत हो गयी। इसके कारण सामाजिक और आर्थिक समानता उत्पन्न होने लगी। इसके अलावा भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता बढ़ने लगी। देश के बड़े राजनेता स्वतंत्रता संग्राम की तैयारी में लग गए।
निष्कर्ष
प्रथम विश्व युद्ध का निष्कर्ष बेहद संवेदनशील है। इस युद्ध के बाद राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नए दौर की शुरुआत हुई। वहीँ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के महत्व को भी समझा गया। इस युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस की स्थापना हुई। इस युद्ध के बाद समाज में परिवर्तन आया। महिलाओं को कई सारे अधिकार मिले जो पहले कभी नहीं मिले थे। युद्ध के पश्चात भारत के लोगों में स्वतंत्रता संग्राम की भावना जागी। कई सारे देशों के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा और नए तरीके से अर्थव्यवस्था की शुरुआत हुई।
Table of Content
परिचय
प्रथम विश्व युद्ध में कई सारे देशों ने भाग लिया था
प्रथम विश्व युद्ध के कारण
साम्राज्यवाद (Imperialism)
सैन्यवाद (Militarism)
परस्पर रक्षा सहयोग (Entangling Alliances)
जर्मनी की नई अंतर्राष्ट्रीय विस्तारवादी नीति
अंतर्राष्ट्रीय प्रभावशाली संस्था का अभाव बना कारण
प्रथम विश्व युद्ध के चरण
प्रथम विश्व युद्ध का आर्थिक परिणाम
प्रथम विश्व युद्ध के राजनीतिक परिणाम
प्रथम विश्व युद्ध के सामाजिक परिणाम
भारत पर प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
प्रथम विश्व युद्ध से मिली स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा
प्रथम विश्व युद्ध के कारण भारत पर आर्थिक प्रभाव
भारतीय समाज में आया बदलाव
निष्कर्ष
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